Women Empowerment in Hindi : महिला सशक्तिकरण का अर्थ होता है महिला की आंतरिक शक्ति का विकास होना। जिसके कारण महिला अपने जीवन से जुड़ी हर जरूरी निर्णय स्वयं लेने में सक्षम हो सके। महिला सशक्तिकरण के कारण स्त्री स्वावलंबी, निडर तथा अपनी बातों को परिवार तथा समाज के आगे बिना किसी डर के रखने में सक्षम हो जाती हैं। बात या बिना किसी बात की अवहेलना को वह बर्दाश्त नहीं कर पाती है।
महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता भारत जैसे पुरुष प्रधान देशों के लिए बढ़ जाता है। पुरुष प्रधान देश में परिवार तथा समाज के अधिकांशतः अधिकार पुरुष के हाथों में होता है। जिसके कारण स्त्री की सोच, विचार और अधिकार का हनन कर दिया जाता है। इसलिए समाज के हर व्यक्ति का दायित्व है कि वह महिला सशक्तिकरण के लिए आगे आए।
प्राचीन काल में महिलाओं की समाज में बहुत इज्जत, प्रतिष्ठा होती थी। महिलाओं को देवी का स्वरूप माना जाता था। कहा भी जाता है, जहां महिला की इज्जत की जाती है वहां देवी लक्ष्मी का वास होता है। भारत देश में इस तरह की विचारधारा प्राचीन काल से ही चलती आ रही है। फिर भी नारी की शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया जाता है। महिला के प्रति छोटी सोच तथा अनेक सामाजिक कुरीतियों जैसे अशिक्षा, दहेज प्रथा, असमानता, कन्या भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, बालिका तस्करी जैसे कुकृत्य महिलाओं के विकास में सबसे बड़ी बाधा है।
किसी भी देश के सर्वांगीण विकास के लिए वहां की महिलाओं, बेटियों का विकास होना बहुत ही आवश्यक है। इसके लिए देश के सभी व्यक्तियों में, महिलाओं के अधिकार और उनके महत्व के प्रति जागरूकता लाने की जरूरत है। इसके लिए सरकार के द्वारा कई प्रकार के कार्यक्रम मातृ दिवस, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, लाडली जैसी योजना को प्रोत्साहित किया जाता है।
महिला सशक्तिकरण तभी होगा जब महिलाएँ शिक्षित होंगी। भारत देश में शिक्षित महिलाओं की संख्या बहुत कम है। एक शिक्षित महिला ही अपने अधिकार और महत्व को अच्छी तरह से समझ सकती है। इसके लिए महिलाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए। तभी वह अपने अधिकारों को प्राप्त कर सकती है। शिक्षित महिला, स्त्री-पुरुष की सामाजिक असमानता को कम कर सकती है।
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महिला सशक्तिकरण में आने वाली रुकावटें
भारत जैसे पितृ प्रधान (पिता या पुरुष) देश में समाज या परिवार द्वारा बनाई गई सभी महत्वपूर्ण निर्णय पुरुष ही लेते हैं। इतना ही नहीं समाज की अनेक प्रकार की रूढ़ीवादी परंपराओं और रीति-रिवाजें भी महिला सशक्तिकरण के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न करती है।
इन्हीं बाधाओं को हम आगे जानते हैं जो इस प्रकार हैं-
- महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं का मुख्य जड़ अशिक्षा है। अशिक्षित होने की वजह से महिलाएँ अपने अधिकार से अनभिज्ञ (अनजान) रहती है। जिसके कारण वे अपने आप को कमजोर महसूस करती है।
- भारत में अधिकांशतः लड़कियां विशेषकर गांव में, लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है। जिसके कारण उनकी पढ़ाई अधूरी ही रह जाती है। पढ़ाई अधूरी होने की वजह से वह पूरी तरह से शिक्षित नहीं हो पाती है। भारत में स्त्री की शिक्षा का दर पुरुषों की अपेक्षा कम है। महिला शिक्षा दर 64.6% है। वहीं पुरुषों की शिक्षा का दर 80.9% है। लड़कियों की कम उम्र में शादी हो जाने के कारण उनकी शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो पाता है।
- भारतीय समाज के अधिकांशतः परिवार में एक प्रबल मनोदशा है, कि उनके घर की महिलाएँ घर से बाहर जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त या रोजगार करें, ऐसा करना पसंद नहीं करते हैं। इस तरह के विचार में पली-बढ़ी लड़कियों की मानसिकता भी संकीर्ण हो जाती है। इसी संकीर्ण मानसिकता को वे आगे अपनी पीढ़ियों में बढ़ाती रहती है। जो महिला सशक्तिकरण में सबसे बड़ी बाधा है।
- लिंग के आधार पर भी पुरुष और महिलाओं में अंतर किया जाता है। समय-समय पर इसका एहसास करा कर उनकी आंतरिक शक्ति को कुंठित कर दिया जाता है। जिसके कारण वे चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती हैं।
- हमारे देश में आजादी के 74 साल बाद भी बाल-विवाह की कुप्रथा समाप्त नहीं हो पाई है। बाल-विवाह महिला सशक्तिकरण के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा है। राजस्थान में सबसे ज्यादा बाल विवाह का प्रचलन है।
- महिलाएँ इस श्रृष्टि की रचना में महत्वपूर्ण किरदार निभाती है। उन्हें जगत-जननी कहा जाता है। फिर भी कन्या भ्रूण हत्या जैसे घृणित अपराध करने में लोग हिचकिचाते नहीं है। कन्या भ्रूण हत्या होने के कारण स्त्री-पुरुष के अनुपात में काफी हद तक कमी आ रही है। हरियाणा, राजस्थान एवं जम्मू कश्मीर में लिंगानुपात में काफी अंतर पाया जाता है।
- दहेज प्रथा भी महिला सशक्तिकरण के मार्ग में अपना अहम रुकावट पैदा करता है। दहेज के लोभी परिवार अपने ही घर की बहू की बलि चढ़ा देते हैं। यह बात दहेज के लोभी को समझ में बिल्कुल नहीं आती कि वे उनके घर के ही एक सदस्य हैं।
- कार्य के क्षेत्र में कुछ जगहों पर महिलाओं को कम भुगतान कर उनके काम को कम आंका जाता है। एक महिला के साथ ऐसा करके उनको कमजोर दिखाया जाता है।
- कार्य क्षेत्र में महिलाओं के साथ होने वाले शोषण भी महिलाओं के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। जो महिला सशक्तिकरण के मार्ग में रोड़ा अटका आते हैं।
महिला सशक्तिकरण के मार्ग को सुदृढ़ और मजबूत बनाने के लिए सरकार के द्वारा कई मुहिम तथा योजना लागू की गई है जो इस प्रकार हैं-
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
- सुकन्या समृद्धि योजना
- उज्जवला योजना
- समर्थ योजना
- सुरक्षित मातृत्व आश्वासन सुमन योजना
- महिलाओं के लिए आरक्षण
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना Women Empowerment in Hindi
इस योजना के तहत देश में लड़कियों के अनुपात में आ रही कमी को दूर करना है। लोगों में इसके प्रति जागरूकता फैलानी है। लड़कियों की संख्या में आ रही कमी को रोकने के साथ-साथ उनकी पढ़ाई पर भी जोर दिया जा रहा है। इस योजना के तहत महिलाएँ किसी भी प्रकार की मदद के लिए पुलिस, कानून तथा चिकित्सा जैसी सुविधाओं का लाभ ले सकती है। इस योजना की शुरुआत 22 जनवरी 2015 को की गई थी। महिला सशक्तिकरण में यह योजना काफी मददगार साबित हो रही है।
सुकन्या समृद्धि योजना
इस योजना के तहत 10 साल से कम उम्र की कन्याओं को उनकी शिक्षा और शादी करने में आर्थिक रूप से सहायता करने के लिए शुरू की गई है। इस योजना के तहत लड़कियों का भविष्य सुरक्षित किया गया है। इस योजना की शुरुआत भी 22 जनवरी 2015 को की गई थी। इस योजना में 10 साल से कम उम्र की लड़कियों के नाम से बैंक या पोस्ट ऑफिस में खाता खुलवाने का प्रावधान है।
उज्जवला योजना
उज्जवला योजना महिलाओं के लिए काफी मददगार साबित हुआ है। इस योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं के लिए काफी कम मूल्य में गैस सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है। जिसका सबसे ज्यादा फायदा गांव में रह रही महिलाओं को हुआ है। इस योजना की शुरुआत 1 मई 2016 को की गई थी।
समर्थ योजना
इस योजना का मकसद महिलाओं को अपने-आप में समर्थ बनाना है। अर्थात महिलाओं को वस्त्र उद्योग से जोड़कर वस्त्र उत्पादन तथा उससे जुड़े काम को सिखाना है। जिससे महिलाएँ स्वावलंबी बन सके।
सुमन योजना
इस योजना का पूरा नाम सुरक्षित मातृत्व आश्वासन सुमन योजना है। इस योजना का मकसद मां और बच्चों के स्वास्थ्य का देखभाल करना है। सुरक्षित मातृत्व आश्वासन सुमन योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित प्रसव कराना है। जिससे मां और बच्चा दोनों सुरक्षित रहें। इस योजना के अंतर्गत गर्भवती महिलाओं की नि:शुल्क सरकारी सेवा प्रदान की जाती है। इसकी शुरुआत 10 अक्टूबर 2019 को की गई थी।
महिलाओं के लिए आरक्षण
महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए सभी सरकारी संस्थाओं में 30 फ़ीसदी, पंचायती राज संस्थानों में 50 फ़ीसदी तथा संसद में 33 फ़ीसदी महिला आरक्षण की घोषणा की गई है।
महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता
भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता के एक नहीं, कई कारण है। मध्यकाल से आधुनिक काल में आते-आते महिलाओं की स्थिति बद-से-बदतर हो गई है। आए दिन महिलाओं के प्रति कई तरह के दुर्व्यवहार की घटनाएं होती रहती है।
भारतीय समाज में महिलाओं का समान भागीदारी के बावजूद उनको उतना सम्मान नहीं मिलता है जितना कि वे हकदार हैं। उनको बराबर का अधिकार देने के लिए महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता बेहद जरूरी है।
पुरुष और महिलाओं के बीच की खाई को कम करना भी बहुत आवश्यक है। तभी एक महिला अपने आप को मजबूत बना सकेंगी।
एक स्वस्थ समाज का निर्माण के लिए पुरुष के साथ-साथ स्त्रियों की शिक्षा भी उतना ही महत्व रखता है।
शिक्षित महिला एक स्वस्थ परिवार और समाज के निर्माण में काफी मददगार साबित होती हैं। हम कह सकते हैं कि एक उन्नत समाज के निर्माण में महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसलिए महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता हमारे समाज को बहुत ज्यादा है।
महिला सशक्तिकरण के लाभ
महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment in Hindi) के कारण ही हमारे समाज की महिलाएँ आत्मनिर्भर तथा मजबूत बन सकती हैं। वह विषम परिस्थितियों में भी कड़े फैसले लेने के लिए मजबूत बन सकी हैं। उन्हें आसानी से डराया-धमकाया नहीं जा सकता है।
महिला सशक्तिकरण के निम्नलिखित लाभ हुए हैं
- महिला के अंदर अपने आप पर विश्वास और शक्ति का संचार हुआ है।
- महिलाएँ कठिन समय में भी अपने सूझ-बूझ से काम लेना सीख रहीं हैं।
- महिलाओं को अपना हक और सम्मान प्राप्त करने का ज्ञान हो गया है।
- बेवजह दूसरों के द्वारा प्रताड़ित होने से वे बच रहीं है।
- महिला सशक्तिकरण के शिक्षा का प्रचार-प्रसार होने से उनको बेवकूफ बनाना मुश्किल हो गया है। वे अपना भला-बुरा सोच सकती हैं तथा इसके सहारे अपना निर्णय खुद ले सकती हैं।