विचित्र बँटवारा – मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी (Vichitra Bantwara – Mulla Nasruddin Ki Kahani): एक बार की बात है। मुल्ला नसरुद्दीन ने बादशाह के जन्म दिवस के अवसर पर कुछ भेंट करना चाहा। सहसा उसे स्मरण हो आया कि उन्हें कलहंस का मांस बहुत पसंद है। बस फिर क्या था, मुल्ला ने पका पकाया कलहंस उनके जन्म दिवस के अवसर पर भेंट करने आया।
विचित्र बँटवारा – मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी | Vichitra Bantwara – Mulla Nasruddin Ki Kahani
मुल्ला नसरुद्दीन बादशाह के महल में पहुंचा। उसने बादशाह से कहा- बादशाह सलामत, आज आपका जन्मदिन है। इसलिए मैं यह कलहंस खुद अपने हाथों से पका कर आपको और आपके परिवार के लोगों को खिलाने आया हूँ।
कलहंस को देखते ही बादशाह के दोनों शहजादियां कलहंस की टांगें और दोनों शहजादे कलहंस का सीना खाने के लिए मचलने लगे। तब बादशाह ने बुद्धिमान मुल्ला को राजमहल बुलवाया और कलहंस का बँटवारा करने को कहा।
मुल्ला नसरुद्दीन ने चाकू से कलहंस का सिर काट कर बड़े ही इज्जत के साथ बादशाह को देते हुए कहा- जहांपना आप हमारे मुल्क के सरताज है। इसलिए आपको इसका सर खाना चाहिए। मेरी दिली ख्वाहिश है कि आप हमारे मुल्क के सरताज बने रहे।
इसके बाद उसने कलहंस की गर्दन काट कर बेगम को भेंट की और बोला- कहावत है कि यदि शौहर की उपमा सिर से दी जाए तो बेगम की उपमा गर्दन से दी जानी चाहिए। मेरे दिली ख्वाहिश है कि आप बादशाह सलामत से कभी ना बिछड़े।
फिर उसने कलहंस का एक-एक डैना दोनों शहजादियों को दिया और कहा मेरी दिली ख्वाहिश है कि आपकी शादी किसी ऐसी जगह हो जाए, जहां आप अपने-अपने शौहर के साथ अच्छा और शानदार जिंदगी जीए।
इसके बाद उसने दोनों शहजादों को कलहंस का एक-एक पंजा दे दिया और कहा- आप दोनों बादशाह के तख्त के वारिस है। पंजा खाकर आप राज गद्दी पर मजबूती से पांव जमा सके। कलहंस के सीने और टांगों का गोश्त ही बाकी बच गया था।
मुल्ला अपनी बात जारी रखते हुए बोला- किसी भी मुल्क की जनता ही उस मुल्क का सीना और पांव होती है। जनता की मेहनत और लगन से कोई भी मुल्क आबाद और धनवान बनता है। जब कोई बादशाह और उसके वारिस ही जिस मुल्क की जनता का दिल और टांगे खाने लगे तो ऐसा समझना चाहिए कि मुल्क के शासक के दिन जल्दी ही लदने वाले हैं।
इस लिहाज से यदि इस कलहंस का सीना और टांगे हमारे बादशाह या उनके परिवार खाता है तो यह एक अपशगुन होगा। बेहतर यही है कि उसे मैं यानी इस मुल्क की जनता मुल्ला नसरुद्दीन खाए।
यह कहता हुआ, वह उस कलहंस के सीना और टांगों का गोश्त उठाकर राजमहल से बाहर चला गया। बाहर बैठकर वह बड़े ही मजे से गोश्त खाने लगा।
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