तेनालीराम और जादूगर का घमंड | Tenali Rama Aur Ghamandi Jadugar

0
1620

Tenali Rama Aur Ghamandi Jadugar: राजा कृष्णदेव राय के दरबार में अक्सर कोई-न-कोई कलाकार अपनी कलाकारी दिखाने आता था। वे अपनी उच्च कोटि की कलाकारी दिखाकर राजा को प्रसन्न कर कीमती पुरस्कार प्राप्त करते थे। ऐसा ही विचार कर एक बहुत बड़ा जादूगर राजा कृष्णदेव राय के दरबार में उपस्थित हुआ। वह जादूगर अनेक प्रकार के अनूठा जादू दिखा कर पूरे दरबार के साथ-साथ राजा को अचंभित कर दिया।

वहाँ उपस्थित सभी दरबारियों एवं राजा, जादूगर से प्रसन्न होकर उसकी प्रशंसा करने लगे। राजा कृष्णदेव राय ने उसे इनाम के रूप में बहुत सारा उपहार प्रदान किए। राजा से बहुत सारे उपहार प्राप्त करने के बाद वह अपने घमंड के आगे वहाँ उपस्थित सभी दरबारियों और राज्य के लोगों को चुनौती दे डाली।

अगर कोई व्यक्ति मेरे जैसा अद्भुत जादूगरी दिखाने का साहस रखता है, तो वह आगे आए। इस तरह की चुनौती को सुनकर वहाँ उपस्थित सभी दरबारी चुप हो गए। सभी लोग एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। परंतु तेनालीराम को जादूगर का यह घमंड से भरा चुनौती बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। उन्होंने आव देखा न ताव और बोल उठे, हां, मैं आपकी चुनौती स्वीकार करता हूं। मैं जो करतब अपनी आंखों को बंद करके कर सकता हूं, क्या आप उसे खुली आंखों से कर सकते हैं?

Tenali Rama Aur Ghamandi Jadugar
Tenali Rama Aur Ghamandi Jadugar

Tenali Rama Aur Ghamandi Jadugar

जादूगर अपने घमंड के आगे बिना सोचे-विचारे फौरन तेनालीराम की चुनौती को स्वीकार कर लिया। तेनालीराम ने दरबारी सेवक से बावर्ची खाने से मिर्ची का चूर्ण लाने का आदेश दिया। वहाँ उपस्थित सभी के मन में एक ही सवाल था कि तेनालीराम उस मिर्ची के चूर्ण का क्या करेंगे?

सेवक ने थोड़ी ही देर में मिर्ची का चूर्ण तेनालीराम के हाथों पर लाकर रख दिया। तेनालीराम ने झटपट अपनी दोनों आँखें बंद की और उस मिर्ची के चूर्ण को अपनी बंद आँखों पर डाल दिया। मिर्ची अपनी आँखों पर डालने के बाद तेनालीराम ने वहाँ उपस्थित महाराज, जादूगर तथा सभी लोगों को अपना यह करतब दिखाया। फिर उसके बाद तेनालीराम ने मिर्ची के चूर्ण को कपड़े से साफ कर स्वच्छ जल से अपनी आंखों को धो लिया। उसके बाद तेनालीराम यही करतब जादूगर को खुली आंखों से करने के लिए कहा। घमंड में मदमाया जादूगर को अपने गलती समझ में आ गई।

जादूगर ने महाराज और तेनालीराम से अपनी गलती के लिए माफी मांगी। वह वहाँ से चुपचाप नतमस्तक होकर चला गया।

ये कहानियाँ भी पढ़ें-

राजा कृष्णदेव राय ने अपने अद्भुत प्रतिभा के धनी तेनालीराम से हमेशा की तरह प्रसन्न हो गए। उन्हें इनाम देकर सम्मानित किया तथा राज्य की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए उनकी प्रशंसा की।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here