राजा भोज की कहानी (Raja Bhoj Ki Kahani): राजा भोज और गंगू तेली की कहावत बहुत ही लोकप्रिय और प्राचीन है। यह कहावत राजा भोज के काल से ही चलता आ रहा है। यह कहावत किसी की तुलना में किया जाता है। जब किसी के बीच श्रेष्ठ और निम्न के लिए तुलना किया जाता है तब हमारे जबान पर झट से यह कहावत आ जाती है। इस कहावत का इतिहास कुछ इस प्रकार है।
राजा भोज और गंगू तेली की कहानी | Raja Bhoj Ki Kahani
मध्य प्रदेश के धार जिला राजा भोज की नगरी थी। जिसे ‘धारा नगरी’ कहा जाता है। राजा भोज शस्त्र और शास्त्र दोनों के विद्वान थे। वह एक श्रेष्ठ शासक थे। उनके शासनकाल में सभी जन सुख और चैन से जिंदगी बसर करते थे। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को राजा भोज ने बसाया था। प्रारंभ में भोपाल का नाम “भोजपाल” था। जो राजा भोज परमार के नाम पर था।
कालांतर में भोजपाल का विकृत नाम भोपाल हो गया। राजा भोज अपने शासनकाल में कई मंदिरों और इमारतों का निर्माण कराया था। वह मां सरस्वती के उपासक थे। उन्होंने एक भोजशाला बनवाई जिसमें उन्होंने मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की। बाद में अंग्रेजों ने अपने शासनकाल के दौरान सरस्वती की प्रतिमा लंदन लेकर चले गए।
राजा भोज की समृद्धि को देखकर दक्षिण के दो शासक कलचुरी नरेश गांगेय तथा तैलंग नरेश ने मिलकर राजा भोज की नगरी धारा नगरी पर आक्रमण कर दिया। परंतु राजा भोज की छोटी सी कुशल और प्रशिक्षित सेना ने दोनों शासकों के सेनाओं को पराजित कर दिया। जब यह बात धारा नगरी के प्रजा को पता चली तो उन्होंने दोनों शासकों गांगेय जिसे गंगू और तैलंग नरेश को तेली कहकर उपहास में यह कहने लगे, कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली। कालांतर में यह एक कहावत के रूप में प्रचलित हो गया। जो आज भी जन-जन के जुबान पर विराजमान है।
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