Parenting Tips in Hindi: आजकल की भागदौड़ वाली जिंदगी में माता-पिता अपने बच्चों को चाह कर भी एक अच्छा, खुशनुमा और प्यार भरा माहौल नहीं दे पाते हैं। जिसके कारण बच्चे के पास सब कुछ जैसे कि मोबाइल, खिलौने होते हुए भी एक खालीपन सा महसूस करते हैं। कारण यह है कि माता-पिता दोनों का कामकाजी होना।
माता-पिता दोनों का कामकाजी होना गलत नहीं है। आजकल की महंगाई भरी और जिंदगी में रोज एक नई चुनौतियों का सामना करने के लिए माता-पिता दोनों को घर गृहस्थी चलाने के लिए काम करना पड़ता है। मगर कामकाज के चक्कर में अधिकांशतः माता-पिता यह नजर अंदाज करने लगते हैं कि एक छोटे से बच्चे का मन क्या चाहता है?
एक बच्चे को दुनिया की दुनियादारी से कोई मतलब नहीं होता है। वह बस अपने माता-पिता के साथ समय बिताना और उनका प्यार पाना चाहता है। बच्चे को जरूरत के समय माता-पिता का साथ ना पाने के कारण बच्चे में कई प्रकार की कुंठाएँ पनपने लगती है। वह चिड़चिड़ा, गुसैल और उदंड भी होने लगते हैं। इसी कुंठा की वजह से एक समय में वह अपने ही माता-पिता से अभद्रता से भी पेश आने लगता है। जिसके वजह से कई बार माता-पिता उदास और परेशान हो जाते हैं। इसी उदासी और परेशानी में वे अपने अंदर गलतियां ढूंढने लगते हैं।
तो आइए आज हम इन्हीं परेशानियों से बचने का उपाय (Parenting Tips in Hindi) बताने जा रहे हैं। हम किस प्रकार अपने कामकाज और बच्चों में तालमेल बैठाते हुए अपने बच्चों को सही परवरिश, देखभाल और उनके आसपास का वातावरण शांत और स्वस्थ बना सकें।
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बच्चों के लिए समय निकालें | Parenting Tips in Hindi
माता-पिता को चाहिए कि जैसे वह अपने बाकी काम समय पर करते हैं या करना चाहते हैं, ठीक वैसे ही बच्चे को भी समय देना उतना ही जरूरी है। अपने व्यस्त जिंदगी में बच्चों के लिए थोड़ा सा समय निकाल कर उनकी दिनभर की दिनचर्या, स्कूल और उनकी जरूरतों और परेशानियों के बारे में जानने की कोशिश करें। ऐसा करने से माता-पिता एवं बच्चों के बीच आपसी समझ और संवाद मजबूत होता है। बच्चों को कभी अकेलापन महसूस नहीं होता है। बच्चों के मन में माता-पिता के प्रति प्यार और भरोसे में वृद्धि होती है।
बच्चों को डांट या मार की जगह प्यार से समझाएं
गलतियां हर इंसान से होती है। गलतियां करके ही हम बच्चे से बड़े होते हैं। बच्चा अगर गलती या शैतानी करता है, तो हमें ध्यान देना चाहिए कि उन्हें डांटने के बजाय प्यार से समझाएं। जहां हमें यह महसूस होता है कि ज्यादा डांट की जरूरत है। उसी वजह से डांटे अन्यथा बच्चों को डांटने या मारने से बचें। अधिक डांटने की वजह से बच्चा चिड़चिड़ा और गुस्सैल हो जाता है।
आगे चलकर वह बच्चा या तो आपकी बात का उल्टा जवाब देगा या फिर अंदर ही अंदर घुटन महसूस करेगा। दोनों ही स्थिति में बच्चे के बचपन और मन मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है। वही प्यार से समझाने पर वह बात को समझने की कोशिश करता है तथा उससे यह गलती दोबारा ना हो उसका यह ध्यान भी रखता है।
बच्चे को कभी भी कम ना आकें
बच्चों के द्वारा खुद के कोशिश से किए गए अच्छे काम को कभी भी कम आंकने की गलती ना करें। उन्हें हमेशा इसके लिए प्रोत्साहित करें। संभव हो तो और अधिक अच्छा करने में उनकी मदद करें।
बच्चे को दूसरे से तुलना न करें
बच्चे को कभी भी दूसरे बच्चे से किसी भी प्रकार की तुलना न करें। चाहे वह तुलना पढ़ाई के क्षेत्र में हो खेलकूद, रंग-रुप या सुंदरता। विशेषकर माता-पिता को ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे के खुद के भाई-बहन या चचेरे, ममेरे, भाई-बहन से तुलना कदापि ना करें। ऐसा करने से उनके मन में दूसरे बच्चे अथवा अपने ही भाई-बहन के प्रति नफरत तथा हीन भावना का जन्म होने लगता है।
जो बच्चे के बाल मन पर बहुत ही गहरा प्रभाव छोड़ता है। याद रहे कि बच्चे के मन में जो कुंठा बैठ जाती है उसे निकालना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। इसलिए किसी से भी तुलना न करे। उनको कुंठित ना होने दें। साथ-ही-साथ भीड़ में या मेहमानों के बीच उन्हें डांटने से बचें। उनकी गलती को अकेले में समझाने की कोशिश करें।
नए कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करें
बच्चा अगर कोई लीक से हटकर या कुछ नया काम करें तो उन्हें मना कभी भी ना करें। उन्हें उनको नए काम के लिए प्रशंसा करें। अगर वह कुछ नया करने की कोशिश करते हैं तो उनके मानसिक और बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। उन्हें सोचने समझने की शक्ति का संचार होता है। उनकी यही विशेषता आगे चलकर उनको प्रगति के पथ पर ले जा सकता है। आज हमारे समाज में कई ऐसे उदाहरण है जो अपने बिल्कुल नए काम से विकास का मार्ग प्रशस्त किए हैं।
बच्चों में आत्म विश्वास बढ़ाएं
बच्चे जब धीरे-धीरे बड़े होने लगते हैं तो उन्हीं के उम्र के अनुसार छोटे-छोटे कार्य करने दे। धीरे-धीरे उनमें खुद से काम करने का आत्मविश्वास बढ़ने लगता है। आत्म विश्वास बढ़ने से वे चीजों को खुद से करने की कोशिश करते हैं और आत्मनिर्भर बनते हैं।
अधिक रोक-टोक ना करें
बच्चे को जरूरत से ज्यादा रोक-टोक ना करें। ज्यादा रोक-टोक करने से बच्चे का मानसिक विकास नहीं हो पाता है। जिसके कारण वे छोटे से छोटे काम को करने में भी डरने लगते हैं। बच्चे बेवजह सोचने बैठ जाते हैं कि कहीं इस काम को करने में मम्मी-पापा या घर के बड़े गुस्सा ना हो जाए।
बच्चे का स्वास्थ्य सर्वोपरि रखें
मां और पिता को बच्चे के स्वास्थ्य को हमेशा हर चीज से ऊपर महत्व देनी चाहिए। बच्चों की रोग निरोधक क्षमता बड़ों से काफी कम होती है। इसलिए उनकी छोटी-से-छोटी बीमारी में उन पर खास ध्यान देना चाहिए। थोड़ा सा दी ध्यान हट जाने से या प्राथमिक उपचार सही से न करने से आगे चल कर उनकी बीमारी के बढ़ने की उम्मीद बढ़ जाती है।
बच्चों को खुशहाल वातावरण दे
जो बच्चे खुशहाल वातावरण में पलते बढ़ते हैं। उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट बनी रहती है। वे हर पल को मनोरंजन बनाना चाहते हैं। इसके विपरीत जिन बच्चों के घर का वातावरण तनावपूर्ण और शिकवा-शिकायत से बड़े होते हैं। उनमें बचपन से ही कमियां और परिवार के प्रति बेरुखा सा व्यवहार आ जाता है। इसलिए माता-पिता को यह हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि आपसी नासमझी या विचार को मिल-बैठकर सुलझाएं। घर में फिजूल के शोर-शराबा पैदा ना करें। जाने-अनजाने इसका सबसे ज्यादा बुरा असर घर के बच्चों पर पड़ता है। इसलिए घर का वातावरण खुशनुमा बना कर रखें।
बच्चों को मेहनत करने की प्रेरणा दें
बच्चे को उनकी जरूरत के अनुसार हर वह सुविधा दें। जिनकी उन्हें जरूरत है। साथ-ही-साथ उनमें मेहनत करने की भी आदत डालें। यह मेहनत पढ़ाई से संबंधित हो, उनका खुद का कार्य करना हो या घर में किसी भी सदस्य की मदद करना हो। समय-समय पर उन्हें मेहनत करने की प्रेरणा देते रहें। उन्हें यह बात समझाना चाहिए कि मेहनत से ही हर चीज प्राप्त किया जाता है। मेहनत से प्राप्त सफलता हमारे साथ हमेशा बना रहता है। मेहनत करने की यही आदत उन्हें भविष्य में सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगा।