Old Age Home in Hindi: ओल्ड एज होम का अर्थ होता है, “वृद्धाश्रम”। इसका मतलब होता है, वृद्धों का आश्रम अर्थात जहां पर एक साथ कई वृद्ध स्त्री और पुरुष एक घर में एक साथ रहते हो। वृद्धाश्रम कोई प्रकृति की देन नहीं है, बल्कि यह उन वृद्धों के व्यस्क और जवान पुत्रों, पुत्रियों, पुत्रवधू और अपने ही परिवार के सदस्यों द्वारा तिरस्कृत वृद्धों का समाज है। जो कहने के लिए वृद्ध माता-पिता हमारे सभ्य समाज में फिट नहीं बैठते है।
यह भारत जैसे देश की विडंबना है कि जिस धरती पर माता पिता को भगवान का स्वरूप मानते हैं। उसी धरती पर उनकी यह स्थिति दयनीय है। यह हमारे समाज की संस्कृति के बिल्कुल विपरीत है। कुछ संभ्रांत परिवार के लोग अपने माता-पिता को खुद ही वृद्धा आश्रम छोड़ कर आते हैं। जबकि कई माता-पिता ऐसे हैं जिनकी हालत इतनी बुरी होती है कि उनको घर से निकाल कर सड़कों पर दर-दर भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है।
वृद्धाश्रम | Old Age Home in Hindi
हमारा समाज इतना अपंग और कमजोर हो गया है कि वे केवल दो प्राणी जिनको कहने के लिए मात्र माता-पिता कहते हैं, उनकी देखभाल नहीं कर सकते। उनकी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते। इस ढलती उम्र में उनको किसी भी बड़ी चीज की कोई ख्वाहिश नहीं रहती। सिवाय अपने बच्चों के साथ रहने की, उनका प्यार और अपनापन पाने की। एक संरक्षण पाने की अपने बच्चों द्वारा जो संरक्षण और प्यार माता-पिता ने अपने बच्चों को दिया था।
हमारे देश के नौजवान पीढ़ियों को यह शिक्षा कौन देगा कि वे उनके अपने ही माता-पिता हैं जो अपने बच्चों की जरा-सी चोट लग जाने पर उनका दिल छलनी हो जाता था। अपने बच्चों के जरा से परेशान होने पर उनकी रातों की नींद उड़ जाती थी। माता-पिता अपनी सारी जिंदगी बच्चों का भविष्य संवारने में लगा देते हैं बिना किसी लालच के। अगर लालच भी होती है तो ऐसी की उसमे में बच्चों का ही हित होता था। मगर आजकल के बच्चों में इतनी शक्ति नहीं है कि माता-पिता के कुछ गिने-चुने वर्षों को वह ठीक ढंग से देखभाल कर सकें।
आजकल मनुष्य इतना भौतिकवादी हो गया है कि वे केवल भौतिक सुखों की कामना करता रहता है। इन भौतिक सुखों की उपस्थिति में अपने बीवी-बच्चों के साथ दिन गुजर बसर करना चाहता है। ऐसा नहीं है कि वे अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर सकते हैं। कमी उनके विचारों में आ गई है। उनके सोचने की शक्ति संकीर्ण हो गई है। वह अपने इन्हीं भौतिक सुखों के आगे अपने माता-पिता को रोड़ा समझने लगते हैं।
उनकी बुढ़ापे की बीमारियों को वे झेलना पसंद नहीं करते हैं। यही बच्चे यह भूल जाते हैं कि बचपन में न जाने कितने ही बीमारियों को उनके माता-पिता ने रोते-हंसते दूर किया था। उनके ऊपर आने वाली हर मुश्किलों को दूर किया था। उनकी ना जाने कितने ही मुश्किलों के बावजूद उनको अपने सीने से लगा कर रखा था।
हर मनुष्य को बस इतना ही सोचने की जरूरत है कि अपने बच्चों में ही अपने बूढ़े माता-पिता को देखें। हमें एहसास होगा कि हमारे बच्चों से काफी कम जरूरत हमारे बुजुर्ग माता-पिता को है। जब हम अपने बच्चों को हर वह चीज देने के लिए इच्छुक होते हैं। जिनकी उन्हें जरूरत है तो हम अपने माता-पिता को भी वे जरूरतें अवश्य दे सकते हैं।
बाकी बातें बस अपने मन को बरगलाने के लिए होता है कि जैसे उनकी हम देखभाल नहीं कर सकते। हमारे पास उनका ध्यान रखने के लिए समय नहीं है वगैरा-वगैरा। हमें अपनी अंतरात्मा अंतर आत्मा को जगाने की जरूरत है। जब हम उनकी जिंदगी की सारी जमा पूंजी रुपया-पैसा लेने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। ठीक वैसे ही तत्परता उन को संरक्षण देने में होनी चाहिए।
समाज का एक दूसरा पहलू यह भी है कि जो बच्चे विदेशों में कामकाज करते हैं। वह अपने साथ माता-पिता को नहीं रख पाते हैं। वे उन्हें वृद्धाश्रम में रखते हैं ताकि उनकी देखभाल अच्छे से हो सके। वहां उनकी अच्छे से देख-रेख हो सके। इसके लिए वे हर महीने उनके लिए खर्च राशि भी भेजते हैं। वृद्धाश्रम का प्रबंध होने से वृद्धों के लिए सहारा हो गया है।
कम-से-कम उनकी रोज सुबह-शाम देखने वाला तो कोई है जो उनकी खोज-खबर ले सके। वहां साथ में बैठकर बात करने वाले हम उम्र हैं। जो अपने मन की बात किसी से कह सकते हैं। मन का घुटन कुछ तो कम होता है। वहां उनकी चिकित्सा तथा खान-पान का ध्यान दिया जाता है।
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भारत देश में वृद्धाश्रम तथा उनमें रहने वाले बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। भारत में एक हजार से भी ज्यादा वृद्धा आश्रम है।