Manushya Ka Sansarik Bhram | मनुष्य का सांसारिक भ्रम

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Manushya Ka Sansarik Bhram | मनुष्य का सांसारिक भ्रम – हिंदी कहानी : ईश्वर दत्त नामक एक शिष्य था। ईश्वर दत्त के गुरु एक बहुत बड़े ज्ञानी और संत पुरुष थे। ईश्वर दत्त अपने परिवार का पालन पोषण और पारिवारिक कर्तव्य को पूरा करते-करते तथा सामाजिक दायित्वों को ढोते – ढोते थक गया था । वह अपने गुरु की छत्रछाया में रहकर भगवान के भक्ति में लीन होना चाहता था । उसे अपने परिवार और समाज से धीरे-धीरे विरक्ति सी होने लगी थी। ईश्वर दत्त को धीरे-धीरे सांसारिक मोह-माया की बातें सारी चीजें नश्वर लगने लगी थी। उसे बस भगवान की भक्ति करना और वही सत्य है ऐसा महसूस होने लगा था।

इसलिए वह अपने परिवार को छोड़कर अपने गुरु के आश्रम में रहने का मन बना लिया था। अपने परिवार वालों को बहुत ही शांत मन और दृढ़ निश्चय कर यह बात बतलाई। परिवार वाले इस बात को सुनकर हतप्रभ हो गए। वे चिंतातुर होकर ईश्वर दत्त से ऐसा नहीं करने को कहा और वह बोले कि सारा परिवार उनसे बहुत प्यार करता है। उनके बिना सभी का जीना मुश्किल हो जाएगा। व्यापारी अली ख्वाजा की कहानी

Manushya Ka Sansarik Bhram

ईश्वर दत्त इस बात को जानकर असमंजस में पड़ गया । वह सोचने लगा कि जो परिवार उससे इतना प्यार करता है ।उनको छोड़कर जाना ठीक नहीं होगा इस बात से परेशान होकर वह अपने गुरु के पास गया कि शायद इसका कोई हल उनके पास हो।

Manushya Ka Sansarik Bhram

Manushya Ka Sansarik Bhram ईश्वर दत्त अपने गुरु के आश्रम में जाकर उनके आगे नतमस्तक होकर शीश झुकाया। ईश्वर दत्त के चेहरे पर चिंता का भाव देखकर संत गुरु सब समझ गए थे। फिर भी वह उससे उसकी चिंता का कारण पूछा।

ईश्वर दत्त ने अपनी सारी उलझन बता दी और कहा कि जो परिवार मुझसे इतना प्यार करता है। उनको छोड़कर मैं कैसे आश्रम में रह सकता हूं। हिंदी कहानी – नदी और पहाड़

गुरु ने शिष्य से कहा तुम अगर यह पता कर लो कि परिवार वाले सच में तुमसे प्यार करते हैं या अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए तुमसे प्यार मात्र करते हैं । तुम्हारे प्रति परिवार का अपना स्वार्थ है या फिर उनका निश्चल प्यार का पता होने के बाद ही तुम मेरे आश्रम में आकर भगवान की भक्ति में लीन होना । इस आश्रम में तुम्हारी जगह हमेशा रहेगी। हिंदी कहानी – तालाब की परी

ईश्वर दत्त ने कहा – गुरुजी इस बात का पता कैसे लगाया जाएगा। फिर गुरु ने कहा – उसका एक ही उपाय है योग विद्या। मैं तुम्हें एक ऐसी योगविद्या सिखाऊंगा जिससे तुम अपनी सांसे घंटों रोककर रख सकते हो।

इस योग विद्या को गुरु अपने शिष्य को सिखाया। फिर गुरु ने शिष्य को एक नाटकीय योजना भी बताई। इसके बाद शिष्य को अपने घर जाने को कहा।

अगले दिन ईश्वर दत्त अपने योग विद्या से सांसे रोक ली और निष्प्राण पड़ा रहा। परिवार वालों का रो-रो कर बुरा हाल हो गया।

ईश्वर दत्त योग विद्या से निष्प्राण की अवस्था में था। परंतु वह अपने चारों ओर की हलचल को महसूस कर रहा था और समझ रहा था। इस बात से बहुत ही आत्मीय सुकून मिल रहा था कि उसका परिवार उससे बहुत प्यार करता है। अतः उसने आश्रम में जाने की इच्छा को त्याग दिया।

कुछ देर बाद ईश्वर दत्त के गुरु अपने शिष्य और उसके परिवार वालों का हाल लेने पहुंचे। गुरु जी ने सभी को ढाढस बंधाया और शांत किया।

गुरुजी अपने शिष्य को कुछ देर देखने के बाद परिवार वालों से कहा कि इसमें प्राण डाला जा सकता है। इस बात को सुनकर घर के सभी लोग बहुत खुश हो गए और जल्दी-जल्दी प्राण डालने की बात कहने लगे। हिंदी कहानी – रितेश का पुराना चश्मा

इस पर गुरु ने कहा कि एक विघ्न है। इस कार्य को पूरा करने के लिए परिवार के किसी अन्य सदस्य को अपने प्राण त्यागने पड़ेंगे। यह सुनकर सभी लोगों के पैर के नीचे की जमीन खिसक गई। यह तो बहुत बड़ा धर्म संकट खड़ा हो गया था परिवार वालों के सामने। सभी लोगों के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी थी।

ईश्वर दत्त का मोह भंग

Manushya Ka Sansarik Bhram : इस कार्य को करने के लिए परिवार का कोई भी सदस्य सामने नहीं आया, आगे नहीं आया। सभी अपने-अपने उत्तरदायित्व और कर्तव्य को दिखाने लग गए। परिवार के सभी सदस्य अपनी-अपनी मजबूरी बता कर प्राण त्यागने से मना कर दिया।

Manushya Ka Sansarik Bhram

ईश्वर दत्त को मिला ज्ञान

Manushya Ka Sansarik Bhram : इस घटना को होने के बाद गुरुजी ने अपने शिष्य ईश्वर दत्त को आवाज दी। उठो ईश्वर दत्त मेरे प्यारे शिष्य। ईश्वर दत्त उठ गया। वह अपने गुरु को प्रणाम किया। गुरु जी सभी को आशीर्वाद देकर ज्योहिं वहां से जाने लगे शिष्य ने उन्हें रोका और कहा आज से मैं आपके साथ रह कर आश्रम में भगवान की भक्ति करूंगा और वह वहां से चल दिया।

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