Essay on Water Pollution in Hindi | जल प्रदूषण पर निबंध

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Essay on Water Pollution in Hindi (जल प्रदूषण पर निबंध): जल प्रदूषण का अर्थ होता है- जल का अशुद्ध होना या दूषित होना। कल-कारखानों से निकलने वाला जहरीला रसायन, विषैला पानी, बड़े-बड़े नालों और नालियों के सहारे नदियों में प्रवाहित किए जाते हैं । जिसके कारण जल प्रदूषित हो जाता है। जल के दूषित हो जाने से जल की गुणवत्ता में कमी आ जाती है। जल प्रदूषित होने से मनुष्य तथा जलीय जीवो दोनों को नुकसान उठाना पड़ता है। मनुष्य अगर जल को दूषित करता है तो वह परिणाम स्वरूप खुद की ही हानि पहुंचाता है। गंदे और विषैले पानी का इस्तेमाल करने से हमें अनेक प्रकार के रोग तथा चर्म रोग का शिकार होना पड़ता है।

Essay on Water Pollution in Hindi
Essay on Water Pollution in Hindi

जल प्रदूषण संसार का एक प्रमुख समस्या बन गया है। हमारी धरती तीन भाग जल और एक भाग स्थल से बना है। हमारे देश भारत के कई गांवों और कस्बों के लोग पीने के पानी के लिए नदियों, झीलों पर निर्भर रहते हैं। अतः यह हमारी ही जिम्मेदारी है कि हम इसे स्वच्छ बनाकर रखें।

जल प्रदूषण के कारण और स्रोत | Essay on Water Pollution in Hindi

कल कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट जल एवं पदार्थ- कल-कारखानों में वस्तुओं, लौह, अयस्क को गलाने एवं निर्माण में जल का उपयोग किया जाता है। जल के उपयोग के बाद निकलने वाले अवांछित जल एवं पदार्थ बड़ी-बड़ी नालियों के सहारे तालाबों एवं नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है। जिसके कारण जल दूषित एवं विषैला हो जाता है।

बड़े-बड़े कल-कारखानों एवं उद्योगों में उर्जा संयंत्रों में जल का उपयोग वस्तुओं को गलाने व मशीन को ठंडा करने में किया जाता है। जिसके फलस्वरूप अनुपयोगी जल को जो विषैले एवं गर्म होते हैं, उन्हें नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है। जिससे जल प्रदूषित होने के साथ-साथ जल के ताप में भी बढ़ोतरी हो जाता है। जो सामान्य जल के ताप से काफी अधिक रहता है। इसे जल तापीय प्रदूषण भी कहते हैं।

शहरीकरण के कारण- वर्तमान समय में हमारा समाज तेजी से शहरीकरण की तरफ बढ़ रहा है। लोग गांव से शहर की ओर पलायन कर रहे हैं। जिसके कारण शहर में जनसंख्या की बढ़ोतरी हो रही है। इस बढ़ोतरी के कारण काफी संख्या में घरों का निर्माण हो रहा है। घरों में उपयोग किए जाने वाले जल जैसे- रसोईघर, शौचालय, कपड़े धोने, नहाने इत्यादि से निकलने वाले गंदे जल को बड़ी-बड़ी नालियों के सहारे नदियों में प्रवाहित कर दिए जाते हैं। जिसके कारण जल में अकार्बनिक पदार्थ तथा नाइट्रेट की मात्रा में बढ़ोतरी हो जाती है। जिसके कारण जल प्रदूषित हो जाता है।

नदियों का दुरुपयोग करने के कारण- नदियों तथा तालाबों का उपयोग मनुष्य नहाने, कपड़े धोने तथा जानवरों को नहलाने, धोने में करते हैं। जिसके कारण नदियों का पानी प्रदूषित हो जाता है तथा पानी पीने योग्य नहीं रह जाता है। यही नहीं, लोग पूजा-पाठ में इस्तेमाल किए गए फूलों तथा हवन सामग्री को भी नदियों तथा तालाबों में विसर्जित करते हैं। जो पानी की सतह पर तैरते रहते हैं। नदियों का जल दूषित होने में इनकी भागीदारी भी प्रमुख है।

अम्लीय वर्षा- कृषि क्षेत्रों में फसलों की उत्पादकता बढ़ाने तथा कीटनाशकों के प्रयोग करने के कारण विभिन्न प्रकार के रसायनों के कण वायु में मिल जाते हैं। जब वर्षा होती है तब यह कण वर्षा के पानी में मिलकर धरती पर, नदियों तथा तालाबों के पानी में मिल जाते हैं।
नदी के तराई क्षेत्र में फसलों में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक खाद वर्षा के पानी के साथ मिलकर नदियों में जाकर मिल जाते हैं। जिससे नदी का पानी दूषित हो जाता है।

ईंधन का जलना- वाहनों, यातायात के विभिन्न साधनों में डीजल, पेट्रोल का उपयोग किया जाता है। जिससे भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड के कण जो हवा में तैरते रहते हैं। वर्षा के जल के साथ मिलकर नदियों, तालाबों में मिल जाते हैं। जिससे जल दूषित हो जाता है।

प्राकृतिक आपदा- प्राकृतिक असंतुलन के कारण होने वाले प्राकृतिक आपदा जैसे- बाढ़ के कारण काफी संख्या में मृत जानवर तथा विभिन्न जीव जंतु बह कर नदियों में चले जाते हैं। जिससे नदी का पानी दूषित हो जाता है।

जल प्रदूषण के दुष्प्रभाव

जल के दूषित होने से मानव तथा जलीय जीव जंतुओं पर काफी दुष्प्रभाव देखने को मिलता है। जो निम्नलिखित है-

जलीय जीव-जंतु पर दुष्प्रभाव- जल प्रदूषण के कारण जल में रहने वाले अनेक प्रकार के जलीय जीवो पर इसका बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके कारण जलीय परिस्थितिक तंत्र असंतुलित होने लगता है। जल उनका निवास स्थान होता है परंतु जल प्रदूषण के कारण उनका यहां रहना कठिन हो गया है। उनकी संख्या में कमी होती जा रही है। प्रदूषित जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाता है। जिसके कारण उनका सांस लेना मुश्किल हो जाता है और वे मरने लगते हैं।

मनुष्य के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव- जल में अपशिष्ट अकार्बनिक पदार्थों के मिलने से पानी की गुणवत्ता में कमी आ जाती है। जिसका सेवन करने से हमारे शरीर पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है। दूषित पानी के पीने से हमें अनेक प्रकार के रोग जैसे- पेट जनित रोग, हैजा, कॉलरा, एलर्जी, चर्म रोग का सामना करना पड़ता है। आंखों में गंदे पानी के जाने से हमारी आंखों को नुकसान उठाना पड़ता है।

कृषि पर दुष्प्रभाव- प्रदूषित जल का रिसाव भूमि के अंदर होता रहता है। जिससे भूमिगत जल भी प्रदूषित हो जाता है। जब हम दूषित भूमिगत जल, नदियों, तालाबों के पानी का उपयोग कृषि के लिए करते हैं तब इसका दुष्प्रभाव फसलों पर पड़ता है। फसल की गुणवत्ता, उत्पादकता में कमी आ जाती है।

आर्थिक प्रभाव- जल के दूषित होने से देश के आर्थिक स्थिति पर भी इसका असर पड़ता है। दूषित जल को शुद्ध करने में काफी मात्रा में लागत मूल्य लगता है। जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर इसका अतिरिक्त बोझ पड़ता है।

जल प्रदूषण के रोकथाम के उपाय

जल प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार की तरफ से कई परियोजनाओं को लागू करना चाहिए। इस परियोजनाओं को नागरिकों, कल-कारखानों के उद्यमियों द्वारा कड़े नियमों के साथ पालन करवाना चाहिए।

  • नदियों, तालाबों में कूड़े-कचरे को प्रवाहित ना करें तथा नदियों के किनारे बने घाटों को स्वच्छ रख कर।
  • बड़े-बड़े महानगरों में कल-कारखानों में जल शोधन संयंत्रों को लगाना चाहिए। जिसके फलस्वरूप कम-से-कम अशुद्ध जल नदियों में प्रवाहित हो सके।
  • कृषि क्षेत्रों में कम-से-कम कीटनाशकों तथा खरपतवार नाशकों का प्रयोग करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप सिंचाई के उपरांत जल कम दूषित हो सके।
  • जानवरों तथा पशुओं को नहलाने के लिए जल का अलग प्रबंध किया जाना चाहिए।
  • तालाबों और नदियों के लिए समय-समय पर स्वच्छता अभियान चलाना चाहिए। जिसके कारण नदियों का पानी स्वच्छ बना रहे।
  • जिन वस्तुओं का वातावरण में जैविक अपघटन नहीं होता है। उन वस्तुओं के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। जैसे- प्लास्टिक तथा प्लास्टिक से बनी वस्तुएं।
  • मिट्टी का कटाव रोककर जल को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं। क्योंकि मिट्टी के कटाव होने से जल में मिट्टी मिल जाता है।
  • नागरिकों में जल को स्वच्छ रखने हेतु जागरूक करके। क्योंकि जागरूक नागरिक ही स्वच्छ जल का महत्व समझ सकते हैं।

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