कुँए का विवाह: तेनालीराम की कहानी – बात उस समय की है, जब राजा कृष्णदेव राय और तेनालीराम आपस में कुछ बातें कर रहे थे। बात करते-करते उनके बीच किसी बात पर एक – दूसरे की राय नहीं बन पा रही थी और उनके बीच उस बात को लेकर विवाद हो गया। विवाद बढ़ने पर तेनालीराम रूठ कर चले गए। दिन बीतते गए। एक-एक करके आठ – दस दिन बीत गए। तब राजा कृष्णदेवराय तेनालीराम को देखे बिना बेचैन हो गए। उसके बाद राजा ने शीघ्र ही अपने सेवकों को तेनालीराम को ढूंढने का आदेश दिया। सेवकों ने आस-पास का पूरा क्षेत्र छान लिया पर तेनालीराम का कहीं अता-पता नहीं चला। अँगूठी चोर और तेनालीराम की कहानी
कुँए का विवाह: तेनालीराम की कहानी
अचानक ही राजा को एक उपाय सूझी। राजा ने सभी गांवों में मुनादी करा दी कि राजा अपने राजकीय कुँए का विवाह रचाने जा रहे हैं। इसलिए सभी गांव के मुखिया अपने – अपने गांव के कुँए को लेकर राजधानी पहुंच जाएं। जो मुखिया इस आज्ञा का पालन नहीं करेगा उसे जुर्माने में 1000 स्वर्ण मुद्राएं देनी होंगी। मुनादी सुनकर सभी गांव के मुखिया परेशान और चिंतित हो गए। वह सोच रहे थे कि कुँए भी कहीं लाए – ले जाए जा सकते हैं? मूर्ख लोगों की सूची – अकबर बीरबल की कहानी
तेनालीराम जिस गांव में रूप बदल कर रह रहे थे, वहां भी वह मुनादी सुनाई दी। गांव का मुखिया इस तरह का अनोखा मुनादी सुनकर परेशान था। तेनालीराम को बात समझते देर नहीं लगी कि उन्हें ढूंढने के लिए महाराज ने यह चाल चली है।
तेनालीराम ने मुखिया को बुलाकर कहा- मुखिया जी आप चिंता नहीं कीजिए। आपने मुझे इस गांव में रहने के लिए आश्रय दिया है। इसलिए आपके इस उपकार का बदला मैं अवश्य ही चुकाऊंगा।
अब, मैं आपको एक उपाय बताता हूं। आप आसपास के मुखियाओं को इकट्ठा करके राजधानी की ओर प्रस्थान करें। तेनालीराम द्वारा दिए गए सलाह के बाद सभी मुखिया राजधानी की ओर अग्रसर हो गए। तेनालीराम भी उनके साथ ही थे। कवि और धनवान आदमी
राजधानी के बाहर पहुंचकर वे सभी एक जगह पर जाकर रुक गए। तेनालीराम ने मुखिया को संदेश देकर राजदरबार में भेजा। वह मुखिया दरबार में पहुंचा और तेनालीराम की राय के अनुसार बोला। महाराज हमारे गांव के कुँएं विवाह में शामिल होने के लिए राजधानी के बाहर डेरा डाले इंतजार कर रहे हैं। आप कृपया करके राजकीय कुँए को उनकी आवभगत के लिए भेजें। ताकि हमारे गांव के कुँएं सम्मान के साथ दरबार के सामने उपस्थित हो सके।
राजा को उनकी बात समझते देर नहीं लगी कि यह सब तेनालीराम की ही तरकीब है। राजा ने पूछा सच – सच बताओ कि तुम्हें यह अक्ल किसने दी है। उस मुखिया ने बोला महाराज कुछ दिन पहले हमारे गांव में एक परदेसी आकर आश्रय लिया था। उसी ने हम लोगों को यह उपाय बताई थी। सारी बात सुनकर राजा समझ गये कि वह परदेसी तेनालीराम ही हैं। राजा स्वयं रथ पर बैठकर राजधानी से बाहर आए और सम्मान के साथ तेनालीराम को दरबार में वापस ले आए। राजा ने गांव वालों को भी पुरस्कार देकर विदा किया ।
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