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रितेश का पुराना चश्मा | Old glasses of Ritesh
परिचय – इस कहानी में पुराना चश्मा यह बताता है कि उसे बेकार समझकर त्याग कर दिया गया था। एक समय में वही जरूरत पड़ने पर काम आकार अपना महत्व दिखा गया।
हिंदी कहानी – रितेश का पुराना चश्मा
यह कहानी रितेश नाम के एक प्रतियोगी छात्र की है। जो मेहनती है, समझदार है, परन्तु जैसा कि हर मनुष्य में अच्छाई के साथ कुछी बुरी आदत भी होती है। ठीक वैसा ही रितेश में भी कुछ बुरी आदत थी। जिससे वह रोज दो-चार होता और इसी आदत की वजह से कभी-कभार परेशान होकर खुद पर झल्लाता भी था।
उसमे बुरी आदत कोई बहुत बड़ी नही, बल्कि आम बात है। वह यह है कि वह चीजों को संभालकर नहीं रखता था। किसी भी वस्तु को वह उसके सही जगह पर नहीं रखता था।
नतीजा यह होता कि उसे उस वस्तु को ढूंढनें में काफी समय बर्बाद करना पड़ता था। कभी-कभी तो चींजे खोने के कगार पर आ जाती थी। दूसरी बुरी आदत यह थी कि वह चीजों को जरा सी खराब होने पर बेकार समझकर तुरंत ही उसका त्याग कर देता था।
रितेश की इन दोनों बुरी आदतों से उसकी माँ भी परेशान हो जाती और कभी-कभी रितेश पर गुस्सा भी हो जाती थी। रितेश की माँ हमेशा इन दोनों आदतों को सुधारने और उसकी महत्ता को समझाया करती थी। परन्तु रितेश हर बार माँ को इन आदतों को सुधारने का भरोसा देता और फिर बात आई-गई हो जाती थी।
बात उस वक्त की है जब रितेश की प्रतियोगिता परीक्षा का समय नजदीक आ गया था। रितेश अपने पड़ोस के मित्र के यहाँ जाकर कुछ घंटे साथ में पढ़कर अपने घर लौट आता था।
एक दिन जब वह अपने मित्र के यहाँ पढ़ने गया तो दोनों मित्र पढाई में काफी ध्यान मग्न हो गए और दोनों को समय का जरा सा भी ज्ञान नहीं हुआ। जब रितेश को वक्त का एहसास हुआ तो थोड़ी देर मित्र से बातें करने के बाद वह अपने घर की ओर निकल पड़ा।
शाम हो चुकी थी, शाम से रात भी हो गई। रितेश लगातार काफी घंटे तक पढ़ाई करने के कारण थक चुका था और रात को वह खाना खाकर जल्दी सो गया। सुबह जब उसे नींद खुली तो उसने अपना चश्मा ढूंढा पर चश्मा नहीं मिला। रितेश को अचानक याद आया कि चश्मा तो वह अपने मित्र के घर पर ही भूल आया है। वह मायूस और चिंतित हो गया।
रितेश को अपनी वस्तु इधर-उधर रखने की आदत का ही परिणाम था कि उसका चश्मा मित्र के घर पर छूट चूका था। वह मन-ही-मन अपने ऊपर गुस्सा हो रहा था।
रितेश की माँ उसके कमरे में आई। माँ रितेश को परेशान और दुखी चेहरा देखकर घबरा गई। माँ ने रितेश से इसका कारण पूछा तो वह घबराते हुए सब कुछ बता दिया और यह भी कहा कि उसका मित्र अब तक तो परीक्षा देने के लिए घर से निकल भी गया होगा।
रितेश की चिंता यह थी कि वह अपनी परीक्षा बिना चश्मे के कैसे दे पाएगा। चश्मे के बिना तो वह थोड़ी देर भी पढ़ लिख नहीं सकता था। रितेश को पता था हमेशा की तरह माँ इस बार भी बहुत डांट लगाएँगी और हुआ भी ठीक वैसा ही। माँ रितेश को डाटा मगर पहले से परेशान रितेश पर माँ ने ज्यादा गुस्सा करना ठीक नहीं समझा और वह कमरे से बाहर निकल गई।
रितेश मायूसी से सिर झुकाए बैठा था कि थोड़ी ही देर में माँ कमरे में आई और मन को शांति देने वाली एक थपकी रितेश के कंधे पर पड़ी। उसने सिर ऊपर किया तो माँ के हाथों में उसने वही पुराना चश्मा देखा जिसको वह जरा सी टूट जाने पर बेकार समझकर छोड़ दिया था। रितेश के चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ गई। चश्मे की सही हालत देखकर उसके मुहँ से कुछ शब्द ही नहीं निकल रहे थे।
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माँ रितेश के मन की उथल-पुथल समझ गई थी। माँ बोली- जब तुम इस चश्मे को बिना काम का समझकर बेकार कह कर परे हटा दिया था तब मैंने उसे कुछ दिन बाद चश्मे की दुकान पर जाकर ठीक करवा लिया था। वो आज तुम्हारे काम आ गई।
रितेश को यह बात भली-भांती समझ में आ गई थी कि उसकी इस बुरी आदत की वजह से काफी नुकसान उठाना पड़ सकता था।
रितेश वही पुराना चश्मा पहनकर अगले दिन अपना परीक्षा देने गया और संयोग की बात यह है कि कुछ महीनों पश्चात् उसे पता चला कि वह उसी परीक्षा में सफलता हासिल कर ली है। जिस परीक्षा को वह उसी पुराने चश्मे को पहन कर दिया था।
इस घटना के बाद रितेश हमेशा वस्तुओं के महत्व को समझकर ढंग से रखना सीख लिया था।