मुल्ला नसरुद्दीन: चतुर लोग क्या करते हैं?: एक बहुत ही खुशनुमा सुबह थी। मुल्ला नसरुद्दीन एक झील के किनारे घूम रहा था। ठंडी हवा पानी की सतह पर लहरें पैदा कर रही थी। झील के किनारों पर हरी घास और शैवाल उग आए थे। कहीं-कहीं पर रंग-बिरंगे फूल भी थे। जो अपनी खुशबू से अपने आसपास के वातावरण को महका रहे थे। पक्षियों के चहकने से वातावरण गुंजायमान हो गया था। मुल्ला नसरुद्दीन झील के किनारे बैठ गया।
वह अपनी चारों ओर के प्रकृति का आनंद ले रहा था। उसने अपने चारों ओर से छोटे-छोटे कंकड़ एकत्र किए और उन्हें पानी में उछालना शुरू कर दिया। कंकड़ पानी में उछालने की वजह से पानी में और भी लहरें उठने लगी। पानी में मछलियाँ कंकड़ से बचने की कोशिश कर रहीं थीं। मुल्ला नसरुद्दीन सोच में पड़ गया। जब उसने बत्तख की आवाज सुनी। उसने देखा कि झील में बत्तखो का झुंड बड़ी ही मस्ती में तैर रहा है। मुल्ला ने मन-ही-मन सोचा की रात के खाने के लिए एक या दो बत्तख पकड़ना अच्छा रहेगा। वह उठा और बत्तखों के करीब जाने के लिए पानी में तैरने लगा।
मुल्ला नसरुद्दीन: चतुर लोग क्या करते हैं?
मुल्ला नसरुद्दीन: चतुर लोग क्या करते हैं?: मुल्ला नसरुद्दीन बहुत ही उत्साहित था। क्योंकि वह बत्तख के सूप के बारे में सोच रहा था। जिसका वह आनंद लेने वाला था। बत्तखों ने मुल्ला नसरुद्दीन को पास आते देखा और चला गया। लेकिन मुल्ला नसरुद्दीन उनकी ओर बढ़ता रहा। उसने ठान लिया कि वह दो नहीं तो एक बत्तख तो अवश्य ही पकड़ कर रहेगा। मुल्ला नसरुद्दीन उनकी ओर बड़ी हीं फूर्ती से लपका। मगर बत्तख भी कुछ कम नहीं थे। उन्होंने भी भागने में कुछ कम फूर्ती नहीं दिखाई।
पलक झपकते ही वह, वहां से ओझल हो गए। मगर तेजी से लपकने के कारण मुल्ला नसरुद्दीन फिसल गया और पानी की सतह के नीचे चला गया। जैसे ही हवा में सांस लेने की कोशिश की। उसने इसके बजाय पानी में सांस ले लिया। अंत में वह खाँसते हुए झील से बाहर निकला और किनारे पर बैठ गया।
वह फिर से एक या दो बत्तख पकड़ने की कोशिश करने के लिए दृढ़ निश्चय किया। वह मन-ही-मन सोचा की मैं पहली बार असफल हो गया हूं। मगर इस बार अवश्य ही बत्तख को पकड़ लूंगा। मुझे उम्मीद नहीं खोनी चाहिए। लेकिन बत्तख इस बार ज्यादा सतर्क थे। उनकी योजना भी कुछ और थी। सभी बत्तखें झील के बीचों-बीच जमा हो गए। वे एक इंच भी हिल नहीं रहे थे। चूँकि मुल्ला नसरुद्दीन के पास कोई विकल्प नहीं था, वह झील में घुस गया और झील के केंद्र में चला गया। लेकिन फिर बत्तख भी विपरीत दिशाओं में इधर-उधर भाग गए।
कई असफल प्रयासों के बाद वह थक गया और झील के किनारे पर आकर लेट गया। अपने आप को सुखाने और अपने सांसों को राहत देने के लिए कुछ देर तक लेटा रहा। उसके बाद वह उठा और झील के किनारे बैठ गया। उसके बाद वह अपनी पोटली खोला और रोटी निकाला। उसने रोटी को गोलाई में मोड़ कर पानी में डुबोया और खाने लगा।
पास के गांव के कुछ लोग झील के किनारे से गुजर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि मुल्ला नसरुद्दीनह अपनी रोटी झील में डुबोया और खाने लगा। एक आदमी ने पूछा- मुल्ला, तुम यह क्या कर रहे हो? मुल्ला नसरुद्दीन ने उत्तर दिया “मैं बत्तख का सूप पी रहा हूं।” उस आदमी ने मुल्ला की ओर देखा और आश्चर्य से पूछा- बत्तख का सूप!, भीड़ में मौजूद लोगों ने एक दूसरे को देखा। मुल्ला नसरुद्दीन ने उनकी उलझन को देखा और हंसने लगा। मुल्ला नसरुद्दीन ने हंसते-हंसते कहा- “यही तो चतुर लोग करते हैं। जो उनके पास है। उसे स्वीकार करते हैं। वह हमेशा खुश रहते हैं।”
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