दावत – मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी: यह कहानी मुल्ला नसरुद्दीन की मुंह जबानी है।
एक दिन की बात है। मेरी किसी बात को, एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति को कुछ कहा। उसने किसी और को कुछ कहा। इसी कुछ एक के चक्कर में, कुछ ऐसा हो गया कि सभी ओर यह बात फैल गई कि मैं बहुत ही खास आदमी हूं। जब यह बात कुछ ज्यादा ही फैल गई तो मुझे शहर में एक दावत में खास मेहमान के रूप में बुलाया गया। मैं दावत का न्योता पाकर बहुत ही आश्चर्य चकित हुआ। खाने-पीने के मामले में मुझे कोई एतराज नहीं है। इसलिए निश्चित समय पर मैं वहां दावत पर चला गया।
मैं रोज पहनने वाले कपड़े में ही सड़क के धूल से सने हुए वहां पहुंच गया। दावत पर जाने से पहले मुझे थोड़ा साफ-सुथरा हो जाना चाहिए था। मगर मैंने इस पर कुछ ज्यादा ध्यान नहीं दिया। जब मैं वहां पहुंचा, तब दरबान ने अंदर जाने से मना कर दिया। मैंने दरबान से बोला- “मैं नसरुद्दीन हूं”। इस दावत का खास मेहमान हूं। दरबान हंसते हुए बोला- “वह तो मुझे साफ-साफ दिखाई दे रहा है”। उसने मजाकिया अंदाज में बोला- और मैं खलीफा हूँ।
यह सुनकर वहां पर उपस्थित बाकी के दरबान भी हंसने लगे। दरबान ने मुझे वहां से चले जाने को कहा- और दुबारा यहां आने से मना कर दिया। कुछ सोच विचार कर मैं वहां से चला गया। थोड़ी ही दूरी पर मेरे एक दोस्त का घर था। मैं अपने दोस्त के घर चला गया। मुझे अपने घर में देखकर मेरा दोस्त बहुत ही प्रसन्न हुआ। थोड़ी देर बात करके मैं अपनी मुद्दे की बात पर आ गया। “दोस्त लाल कढ़ाई वाली शेरवानी जो तुम मुझे भेट देना चाहते थे, क्या वह शेरवानी अभी भी तुम्हारे पास है?”
दोस्त ने कहा- “क्यों नहीं? बेशक! वह अभी भी तुम्हारे लिए ही रखी हुई है। तुम्हें चाहिए तो इसे रख लो। मुझे बहुत खुशी होगी। मैं उस शेरवानी के लिए अपने दोस्त को बहुत-बहुत शुक्रिया बोला और शेरवानी को पहन लिया। फिर मिलने का वादा करके, मैं अपने दोस्त के घर से चला आया। उस शेरवानी पर सोने, चांदी का बहुत ही बारीक़ और सुंदर कशीदाकारी की हुई थी। उसमें लगे हुए बटन, हाथी दांत के बने हुए थे। उसे पहनकर मै बहुत अमीर शख्सियत का मालिक लग रहा था।
मैं अपनी अमीरी का चोला पहनकर दुबारा उस दावत में शिरकत किया। दरबानों ने इस बार मेरी खूब दुआ-सलाम की। वह मेरी बड़ी तीमारदारी करते हुए दावतखाने में ले गए। अंदर बड़ी-बड़ी कालीने बिछी हुई थी। वहाँ पर भिन्न-भिन्न प्रकार के खुशबू से भरे पकवान थे। पकवानों की लंबी फेहरिस्त थी। मुझे इस बात की खुशी हो रही थी कि बड़े-बड़े लोग, बड़े पद वाले मियां, मेरी इंतजार में खड़े थे। उन्हीं में से एक मियां ने मुझे बैठने के लिए कुर्सी आगे बढ़ाई। लोग आपस में बात कर रहे थे कि सबसे बड़े बुद्धिमान, तीव्र बुद्धि वाले नसरुद्दीन मियां यही हैं।
मैं बहुत ही खुशमिजाजी से कुर्सी पर अपनी तशरीफ़ रखा। मेरी इज्जत अफजाई में, उन्होंने मेरे बाद ही दावत की शुरुआत की। वहां पर सबकी निगाहें मुझ पर ही टिकी हुई थी। जैसा कि मेरी छवि लोगों के मन में बन चुकी थी। वह लोग यह जानना चाहते थे कि मैं आगे क्या करने वाला हूं।
भोजन के पहले मुझे बहुत ही मजेदार शोरबा परोसा गया। वे सब मेरे इंतजार में थे कि मैं शोरबे का स्वाद चखूँ। मैंने शोरबे का प्याला हाथ में लिया और अपनी खूबसूरत शेरवानी पर बड़े ही प्यार से हर तरफ डाल दिया। वहां पर हाजिर सभी मेहमानों की हालत देखते बन रही थी। किसी को भी मेरी इस हरकत का जरा सा भी इल्म नहीं था। सभी हैरान-परेशान दिखाई दे रहे थे।
वहां उपस्थित एक मेहमान ने उठकर मेरी तबीयत का जायजा लिया और बोला- “आप ठीक तो है न हजरत”। सभी अपने-अपने मन की बात एक दूसरे को कह रहे थे। जब सब अपनी-अपनी बातें कह कर शांत हो गए। तब मैं अपनी शेरवानी से बड़े ही प्यार से बोला- “मेरी प्यारी और महंगी शेरवानी मुझे उम्मीद है कि आपको यह लजीज शोरबा बहुत पसंद आया होगा। अब यह तो साबित हो गई है कि इस दावत पर आप को ही बुलाया गया था, मुझे नहीं”।
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दावत – मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी से सीख
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी की पहचान उसके कपड़ो से नहीं करनी चाहिए।